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राहु-राशि-फल  सभी 12 राशियों के अनुसार..

मेष पराक्रम हीन, आलसी, अविवेकी, अतिचारी, शिरपीड़ा युक्त, कामाग्नि पीड़ित विवाद में विजयी, दीर्घ रोगी।

वृष-सुखी, चंचल, धन-धान्य संपन्न कपट-शूरवीर, वाचाल, धन-नाशक, दरिद्र, मित्रों की बात न माननेवाला।

मिथुन-योगाभ्यासी, गायक, बलवान, दीर्घायु, बाहुबली, प्रतापी, विश्वबंधु, बुद्धि चातुर्य युक्त, विवेकी।

कर्क-उदर रोगी, धनहीन, कपटी, पराजित, मित्रों से सुखी, स्त्री प्राप्ति, माता-पिता को क्लेश, शीत-वात-विकार।

सिंह- चतुर, नीतिज्ञ, सत्पुरुष, विचारक, सन्तान की चिन्ता अधिक, राजदण्ड भय भूख से मृत्यु, कुसि पीड़ा।

कन्या –लोकप्रिय, मधुर भाषी, कवि, लेखक, गायक, कोई बुद्धि-बल से हीन शत्रु या रोग का विनाश।

तुला-अल्पायु, दन्त रोगी, मृत धनाधिकारी, कार्य कुशल, स्त्री की हानि, अग्नि या वायु से कष्ट, सन्तप्त।

वृश्चिक– पूर्त, निर्धन, रोगी, धन नाशक, राज्य या विद्वानों से सम्मानित, थनी लोक विरोधी ग्रन्धि रोग से पीड़ित।

धनु –बाल्यावस्था में सुखी, दत्तक जानेवाला, मित्र द्रोही, दृढ़ संकल्पी, व्रतग्राही बंधुओं पर अति स्नेही।

मकर- मित्र द्रोही, मितव्ययी, कृपण, कुटुम्ब रहित, धन-मान, प्रताप, सुखादि की क्षीणता, जलभय।

कुंभ-मितव्ययी, कुटुम्ब रहित, दन्त रोगी, विद्वान्, लेखक, उपदेश से कल्याण, परदेश में प्रतिष्ठा, शत्रु नाश।

मीन –आस्तिक, कुलीन, शान्त, कला प्रेमी, दक्ष, धन संचय में विघ्न, उच्च स्थान से गिरने का भय, भ्रमण में असफलता।

राहु-दृष्टि-फल-

यदि लग्न पर राहु की दृष्टि हो तो जातक शरीर सुख रहित, सदैव रोगी और चेचक आदि द्वारा मुंह पर चिह होते हैं।

द्वितीय भाव पर दृष्टि हो तो कौटुम्बिक कष्ट 8 या 14 वर्ष में जलभय तथा पापावादी से मृत्यु तुल्य कष्ट होता है।

तृतीय भाव पर राहु की दृष्टि होने पर पराक्रम द्वारा धन लाभ सफलता, धन से सुखी, पुत्र को कष्ट, चोर-अग्नि-सर्प राज्यादि से भय होता है। भाई के द्वारा सुख हानि अथवा सहोदरों को कष्ट होता है।

चतुर्थ भाव पर यदि दृष्टि हो तो माता को कष्ट, पुण्य भाव का उदय, म्लेच्छ जन द्वारा भाग्योदय, सर्वत्र विजय, कुक्षि या उदर में दारुण दुःख और भाई या मित्र को पीड़ा होती है।

पंचम भाव पर राहु की दृष्टि का अर्थ है, सन्तान को कष्ट, अल्प भाग्य मुक्त कभी राज्य पक्ष द्वारा विजयी, श्रम करने पर भी विद्या निष्फल या अल्प विद्या-मंदबुद्धि, स्मरण शक्ति रहित और जीवन भटकाव पूर्ण व्यतीत करता है।षष्ठ भाव पर राहु की दृष्टि का अर्थ है शत्रु का नाश, दुष्ट ग्रह के साथ होने

पर धन की हानि, दुष्टों द्वारा धन की क्षति, गुणी, विनम्र बल और वीर्य की हानि होती है।

सप्तम भाव पर राहु की दृष्टि होने से भोग में अधिक रुचि, कामदेव की जागृति अधिक, स्व वचनों को सिद्ध करनेवाला, हठी, निडर, जिद्दी तथा इसकी दशा में स्त्री की मृत्यु अथवा स्वयं को दैहिक कष्ट होता है।

अष्टम भाव पर राहु की दृष्टि होने पर वंश हानि, दुखी, व्याधि, कष्ट व नीच कर्म द्वारा जीविका अर्जित करता है। पशु द्वारा कष्ट, बवासीर, संग्रहणी-भगंदर आदि रोग कष्ट देता है।

नवम भाव पर दृष्टि होने से नव वधू का भोगी, भाइयों द्वारा कष्ट, पुत्र धन से सुखी होता है। मित्र पीड़ा, म्लेच्छ शासक द्वारा उन्नत्ति व विजय पाता है।

दशम भाव पर राहु की दृष्टि होने पर कार्य में सफलता, बाल्यावस्था में पिता की मृत्यु, माता को थोड़ा-सा सुख प्राप्त होता है। किसी-किसी की माता दीर्घायु पानेवाली और कार्य व्यवसाय में जातक हानि उठाता है।

लाभ भाव पर राहु की दृष्टि पूर्णायु, धन-धान्य से संपन्नता, राज्य से लाभ व सुख और उन्नत्ति के लिए सतत क्रियाशील रहता है।

व्यय भाव पर राहु की दृष्टि जातक को कृपण, दान-पुण्य रहित, युद्ध में शत्रु का विनाशक, विफलता युक्त पर कोई-कोई सुखी भी होता है। कामी, वधिर तथा कुल का नाशक होता है।

राहु विशेष पर विचार-

राहु का अधिकार नागलोक पर है। मानव की मृत्यु के बाद उसकी वासनाएं परिवार में रही हों तो मृत्यु के बाद वह आत्मा घर में नाग योनि में रहता है। अनुकूल समय पाते ही यह ममत्व के कारण उसी परिवार में जन्म लेता है। इस प्रकार का पुनर्जन्म हो तो भी कालसर्प योग जन्मांग में आयेगा ही। पैसों से समृद्ध लोगों में कालसर्प योग के साथ ही राहु चंद्र की युति या अंशात्मक केन्द्र योग हो तो राहु की महादशा में या गोचर राहु के भ्रमण काल में उसकी बरबादी हमने देखी है। ऐसी अवदशा होने के पीछे उनके बाप-दादाओं ने बुरे तरीके से धन कमाया होगा, यही एक कारण उनकी बरबादी के पीछे होना चाहिए। पिछड़े हुए एवं गरीब जाति के लोगों पर राहु की पकड़ अधिक मजबूत रहती है इसलिए कोई-न-कोई शक बना ही रहता है। ऐसे प्रसंगों में नाग देवता का पूजन काफी हद तक समाधान देता है।

नाग संपत्ति का प्रतीक है। दुनिया की संपूर्ण धन संपदा पर नागों का आधिपत्य है। जो धन संपत्ति की लालसा से वीतराग होते हैं, उनकी कुंडलिनी जागृत होती है। वे पूर्णतया इस नागपाश से मुक्त हो जाते हैं। राहु-केतु के नागपाश से महापुरुष ही मुक्ति पा सकते हैं। वे काल को अपने वश में कर लेते हैं। भारत की कुंडली में कालसर्प योग है। इस ‘कालसर्प योगी’ भारत को स्वतंत्रता के बाद पं जवाहरलाल नेहरू के रूप में पहला प्रधानमंत्री ‘कालसर्पयोगी’ ही प्राप्त हुआ। यह योग भी बहुत कुछ कहता है।

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